भाषा का स्वरूप ( Bhasha ka swarup)

भाषा का स्वरूप

भाषा का स्वरूप





भाषा का स्वरूप  के बारे में आज हमलोग जानेंगे /

भाषा की परिभाषा 

सामान्यतः भाषा मनुष्य की सार्थक व्यक्त वाणी है / ‘भाषा’ शब्द संस्कृत के ‘भाष’ धातु से बना है/ इसका अर्थ वाणी को व्यक्त करना है / इसके द्वारा मनुष्य के भावों,बीचों और भावनाओ को वयक्त किया जाता है / भषा की परिभाषा देना एक कठिन कार्य है / फिर भी, भाषावैज्ञानिकों ने इसकी अनेक परिभाषाएँ दी है/ किन्तु ये परिभाषाएँ पूर्ण नहीं है / हा में कुछ –न-कुछ त्रुटी पाई जाती है/ आचार्य देवेन्द्रनाथ शर्मा ने भाषा की परिभाषा इस प्रकार बनायीं है – “उच्चारित ध्वनि-संकेतों की सहायता से भाव या विचार की पूर्ण अथवा जिसकी सहायता से मनुष्य परस्पर विचार-विनिमय या सहयोग करते हैं, उस याद्रच्छिक , रुढ़ ध्वनि-संकेत की प्रणाली को भाषा कहते है / यहाँ तीन बातें विचारणीय है – (1) भाषा ध्वनि संकेत है ; ( 2) यह याद्रच्छिक है; (3) वह रुढ़ है/

 (1) सार्थक शब्दों के समूह या संकेत को भाषा कहते हैं / यह संकेत स्पष्ट होना चिहिए / मनुष्य के जटिल मनोभावों को भाषा व्यक्त करती है; किन्तु केवल संकेत भाषा नहीं है/ रेलगाड़ी का गार्ड हरी झंडी दिखाकर यह भाव व्यक्त करता है की गाड़ी अब खुलने वाली है; किन्तु भाषा में इस प्रकार के संकेत का महत्व नहीं है / संही संकेतों को सभी  लोग ठीक-ठीक समझ भी नहीं पते और न  इनसे विचार ही सही-सही व्यक्त हो पते हैं/ 

  (2) भाषा एक  याद्रच्छिक संकेत है/ यहाँ शब्दों  और अर्थों  में कोई तर्क-संकेत सम्बन्ध नहीं रहता / कुत्ता  , गगय  आदी को क्यों पुकारा जा रहा है, यह बताना कठिन है / इनकी आवाजों  को समाज ने स्वीकार कर लिया है / इसके पीछे कोई तर्क नहीं है / 


 ( 3) भाषा के ध्वनि संकेत रुढ़ होते है/ परम्परा या युगों से इनके प्रयोग होते आये है / बालक , औरत , वृक्ष आदि सब्दों का प्रयोग लोग अनंतकाल से करते आ रहे है/ चाहे वह जवान हो , बुढा हो या बच्चे सभी इनका प्रयोग करते है / क्यों करते है इसका कोई कारण नहीं है / ये प्रयो तर्कहीन हैं /    कुछ भाषावैज्ञानिकों ने ने भाषा के निम्नलिखित लक्षण दिए हैं –
  •  मनुष्य और मनुष्य के बीच वस्तुओं के बिषय में अपनी इच्छा और मती का आदान-प्रदान करने के लिए व्यक्त ध्वनि-संकेतों का जो व्यावहार होता है, उसे भाषा कहते हैं /’ – डॉ. श्यामसुन्दरदास
  •  जिन ध्वनि चिन्हों द्वारा मनुष्य विचार विनिमय करता है , उसको समष्टि रूप से भाषा कहते हैं /’ - डॉ. बाबूराम  सक्सेना
उपर्युक्त परिभाषाओं से  निम्नलिखित निष्कर्ष निकलते है –  

  1.  भाषा में धवनि-संकेतों का परंपरागत और रूढ़ प्रयोग होता है / 
  2.  भाषा के सार्थक ध्वनि-संकेतों से मन की बातों या विचारों का विनिमय होता है /
  3.   भाषा के ध्वनि-संकेत किसी समाज या वर्ग के आंतरिक और बाहय कार्यों के संचालन या विचार-विनिमय में सहायक होते हैं /    
  4. हर वर्ग या समाज का ध्वनि संकेत अपने होते हैं, दूसरों से भिन्न होते हैं /


भाषा की प्रकृति 

              भाषा सागर की तरह सदा चलती-बहती रहती है / भाषा के अपने गुण या स्वभाव को भाषा की प्रकृति कहते हैं / हर भाषा की अपनी प्रकृति , आंतरिक गुण-अवगुण होते हैं/ भाषा एक सामाजिक शक्ति है, जो मनुष्य को प्राप्त होती है / मनुष्य उसे अपने पूर्वजों से सीखता है और उसका विकास करता है/ यह परम्परागत और अर्जित दोनों हैं/ जीवंत भाषा ‘ बहता नीर ‘ की तरह सदा प्रवाहित होती रहती है / भाषा के दो रूप हैं- मौखिक और लिखित/ हम इसका प्रयोग बोलकर और लिखकर करते हैं / देश और कल के अनिसार भाषा अनेक रूपों में बांटी है/ यही कारण है की संसार में अनेक भाषाएँ प्रचलित हैं / भषा वाक्यों से बनती है , वाक्य शब्दों से और शब्द मूल ध्वनियों से बनते है/ इस तरह वाक्य , शब्द और मूल धवनियाँ ही भाषा के अंग है / व्याकरण में इन्हीं के अंग-प्रत्यंगों का अध्ययन-विवेचन होता है/ अत: व्याकरण भाषा पर आश्रित है /

भाषा के विविध रूप

 हर देश में भाषा के तीन रूप मिलते हैं –  

  1.  बोलियाँ; 
  2.  परिनिष्ठित भाषा ; 
  3.  राष्ट्रभाषा
1. जिन स्थानीय बोलियों का प्रयोग साधारण जनता अपने समूह या घरों में करती है , उसे बोली कहते हैं / किसी भी देश में बोलियों की संख्यां अनेक होती हैं / भारत में लगभग ६०० से अधिक बोलियाँ बोली जाती है / जैसे – भोजपुरी , मगही ,बंगाली , गुजराती , अवधि आदि /

2.परिनिष्ठित भाषा व्याकरण से नियंत्रित होती है / इसका प्रयोंग शिक्षा , शासन और साहित्य में होता है/ किसी बोली को जब जब वायाकर्ण से परिष्कृत किया जाता है, तब वह परिनिष्ठित भाषा बन जाती है / 

3.जब भाषा व्यापक शक्ति ग्रहण कर लेती है , तब आगे चलकर राजनीतिक और सामाजिक शक्ति के आधार पर राजभाषा या राष्ट्रभाषा का स्थान पा  लेती है / एसी भाषा सभी सीमायों को लाँघकर अधिक ब्यापक और विस्तृत क्षेत्र में विचार-विनिमय का साधन बनकर सरे देश की भावात्मक एकता में सहायक होती है / भारत में १५ विकसित भाषाएँ हैं , पर हमारे देश के राष्ट्रीय नेताओं ने हिंदी भाषा को ‘राष्ट्रभाषा’ का गौरव प्रदान किया है / इस प्रकार हर देश की अपनी राष्ट्रभाषा है- जर्मनी की जर्मन , नेपाल की नेपाली, जापान की जापानी आदि /

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