हिंदी का नामकरण (Hindi ka namkaran)


  

    हिंदी भाषा का संक्षिप्त परिचय या हिंदी का नामकरण 

हिंदी , हिन्दू  और हिंदुस्तान - ये सब्द संस्कृत के नहीं; फ़ारसी के हैं /
हिंदी भाषा का जन्म उत्तरभारत में हुआ, पर उसका नामकरण ईरानियों और भारत के मुसलमनानों ने किया /यह बात कुछ ऐसी ही है की बच्चा हमारे घर जन्मे और उसका नामकरण हमारे पडोसी करें/ वस्तुत:, हिंदी किसी संप्रदाय या धर्म की भाषा नहीं है, इसपर सबका सामान अधिकार है।  'हिंदी ' नामकान की एक बड़ी ही दिलचस्प कथा है/ उसका विवरण इस प्रकार है :
         
             आठवीं सदी से आजतक 'हिंदी' को तीन अर्थों में ग्रहण किया गया है -
(१ ) व्यापक अर्थ में,  (२) सामान्य अर्थ में और (३) विशिष्ट अर्थ में / जब तक मुस्लमान भारत में नहीं आये , तबतक 'हिंदी' शब्द का प्रयोग व्यापक अर्थ में होता रहा / व्यापक अर्थ में हिंदी "हिन्द या भारत से सम्बद्ध किसी भी व्यक्ति , वस्तु तथा हिन्द या हार्ट में बोली जानेवाली किसी भी आर्य , द्रविड़ या अन्य भारतीय भाषों के लिए " प्रयुक्त होती थी / ईरानियों की प्राचीनतम धर्मपुस्तक 'अवेस्ता' में 'हिंदी' , 'हिन्दू' आदि शब्द मिलते हैं / मध्यकालीन ईरान में 'हिन्द' में 'ईक' विशेषण-प्रत्यय लगाकर 'हिन्दीक' , फिर ' हिन्दीग' शब्द बना / कालांतर में अंतिम व्यंजन लुप्त हो गया और 'हिंदी' शब्द  हिन्द के विशेषनरूप में प्रचलित हुआ ' प्रारम्भ में 'हिंदी' शव्द देशबोधक  था / कुछ लोग 'हिंदी' का सम्बन्ध 'सिन्धी' से जोड़ते हैं, क्योंकि ईरानी लोग 'स' का उच्चारण 'ह' की तरह करते थे / आठवीं सदी तक ईरानियों द्वारा 'हिंदी' शब्द का ऐसा  ही प्रयोग होता था / ईरान से ही 'हिन्द' और 'हिंदी' शब्द अरब, मिस्त्र ,सीरिया तथा  अन्य देशों को प्राप्त हुए; किन्तु इस प्राचीन व्यापक अर्थ में 'हिंदी' शब्द का प्रयोग अब नहीं होता / भारतीय संविधान ने इस शब्द का ग्रहण भारतीय संघ की राजभाषा के रूप में किया है/ भारत के प्राचीन ग्रंथों में 'हिंदी', 'हिन्द'और 'हिन्दू' शब्दों का प्रयोग नहीं मिलता/
     
                      भाषा के सामान्य अर्थ में  'जबान-ए-हिंदी' शब्द का प्रोग मध्यकालीन फारसी और अरबी साहित्य में मिलता है/ छठी शताब्दी के बादशाह नौशेरवां के राजकवि ने 'पंचतंत्र' की भाषा को 'जबान-ए-हिंदी' की संज्ञा दी है / ' हिंदी ' का यह प्रयोग भारत की समस्त भाषाओँ - संस्क्रृत ,  पली , प्राकृत , अपभ्रंश - के लिए हुआ है / स्पस्ट है की 'हिंदी' शब्द का प्रयोग देश के बाहर दो अर्थों में हुआ - एक, देश के अर्थ में और दूसरा, भारतीय भाषाओँ के अर्थ में/ आज ये दोनों अर्थ पुराने पड़ चुकें हैं और अपना महत्व खो चुके  हैं /
                    भाषा के अर्थ में 'हिंदी' शब्द का प्रयोग संस्कृत , प्राकृत, अपभ्रंश आदि किसी प्राचीन भारतीय आर्यभाषा में नहीं हुआ है / मध्ययुग में भारतीय परम्परा के कवियों ने प्राचीन भाषाओँ की तुलना में अपनी कविता की भाषा को प्राय: 'भाषा' या 'भाखा' नाम से पुकारा है/ कबीर कहते हैं; ' संस्कीरत है कूप जल ,भाषा बहता नीर/' तुलसीदास ने कहा ; 'का भाषा का संस्कृत,प्रेम चाहिए साँच /'  किन्तु मुस्लिम परम्परा के कवियों और विद्ववानों ने उतरभारत  की मध्यकालीन जनभाषा को प्राय: 'हिन्दवी' शब्द से सम्बोधित किया है / तेरहवीं सदी में भारत के फारसी कवि औफी (१२१८ ई .) ने सर्वप्रथम 'हिन्दवी' शब्द का प्रोग हिन्द की देशी भाषा के लिए किया था / इसी प्रकार अन्य मुस्लिम कवियों -मसऊद , अबुल हसन, अमीर खुसरो आदि -ने भी देशी भाषा को 'हिंदी' या 'हिन्दवी' या 'हिन्दुई' नाम दिया है/ सोलहवीं सदी के मुस्लिन कवि जायसी ने 'हिन्दवी' का प्रयोग किया है -

          तुर्की, अरबी , हिन्दवी, भाषा तेती आहि /
          जामे मारग प्रेम का ,सबै सराहैं ताहि //

लगता है की दिल्ली से अवधप्रदेश  तक की देशी भाषा 'हिंदी' या 'हिन्दवी' नाम से प्रचलित होने लगी थी / अकबर की दरबारी कवी रहीम को 'हिंदी' कवी कहा गया है / अनुमान है की मध्ययुग में देशी भाषा के अर्थ में 'भाखा', 'हिंदी' और 'हिन्दवी' शब्द समानार्थक बन चुके  थे / 

         भारत में जब अंगरेज आये और १८०० ई. से हिंदी को 'हिन्दुस्तानी' संज्ञा दी गयी , तब भाषा सम्बन्धी एक नयी समस्या पैदा कर दी गयी / पर, हिंदी अपने वास्तविक रूप में स्थपित ही चुकी है/ यदि भारत का नाम 'हिन्द' है  तो इस देश की राष्ट्रभाषा का नाम 'हिंदी' ही होगा/ हमारे देश का नाम हिंदुस्तान नहीं गो सकता; क्योंकि यह देश केवल हिन्दुओं का नहीं है / ऐसी स्थिति में देश के राष्ट्रभाषा को 'हिन्दुस्तानी' की संज्ञा नहीं दी जा सकती / डॉ. सुनीतिकुमार चटर्जी के शब्दों में , 'हिंदी एक महान संपर्क-साधक भाषा है /' बंगाल के सुधी महापुरुषों ने भी इसकी गौरव-गरिमा को पहचाना था / बाबू बंकिमचंद्र चटर्जी ने १८७६ ई. में 'बंगदर्शन' में लिखा : 'हिंदी शिक्षा न करीले, कोनो क्रमे-ई चलिबे न /'
               
                 अत: हिंदी भारत की सामान्य जनता की भाषा है , देश की एकता की संपर्क-भाषा है, साधु-संतों की भाषा है और देश की केन्द्रीय शक्ति है / ऐसी विकसित भाषा का 'सीमित क्षेत्र' नहीं हो सकता /

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